lalittripathi@rediffmail.com
Stories

मान सम्मान

144Views

मान सम्मान

अनुराधा जी बहुत खुश थी जब उन्होंने सुना कि उनकी बेटी नताशा के बेटे वरुण का विवाह एक महीने बाद होने वाला है। लेकिन साथ ही, वे मायरे की तैयारी को लेकर चिंतित भी थीं। अनुराधा जी के पति का पांच साल पहले देहांत हो गया था। उनके दो बच्चे हैं, बड़ी बेटी नताशा और छोटा बेटा रमन। रमन नताशा से काफी छोटा है, इतना कि नताशा का बेटा वरुण रमन से सात साल ही छोटा है और उसे मामा कम और दोस्त ज्यादा मानता है।

अनुराधा जी के पति का खुद का बिजनेस था, लेकिन बिजनेस में घाटा होने के कारण उन पर कर्ज चढ़ गया था। इस सदमे को वे सह नहीं पाए और एक दिन अचानक उनका देहांत हो गया। जो संपत्ति थी, वह सब बेचकर अनुराधा जी और रमन ने कर्ज चुकाया। ले देकर सिर्फ एक मकान बचा है।

रमन का विवाह नेहा के साथ दो साल पहले हुआ था। नेहा और रमन दोनों नौकरी करते हैं और जैसे-तैसे घर का खर्चा उठाते हैं। उनके पास शादी में हुआ कर्जा भी चुकाना है, साथ ही अनुराधा जी की दवाइयों का खर्च भी उठाना पड़ता है। दोनों फिलहाल बच्चे की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। नताशा इस रविवार को मायरे की लिस्ट देने आने वाली थी। जब नताशा घर आई, तो उसने एक लंबी लिस्ट दी, जिसे सुनकर अनुराधा जी चुप हो गईं और रमन और नेहा एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे।

“दीदी, लिस्ट सोच-समझकर बनाई होती, इतना सब कुछ कैसे देंगे?” नेहा ने कहा।

मायरा तो देना ही पड़ेगा भाभी,” नताशा ने जवाब दिया।  अनुराधा जी ने कहा, “लेकिन बेटा, यह कुछ ज्यादा नहीं है?”…..”मां, अब एक मायरे के पीछे तुम मेरी नाक कटवा दोगी ससुराल में?”…..”बेटा, इतना तो तुम्हारे ससुराल वाले भी जानते हैं कि पिछले पांच सालों में हम पर क्या-क्या बीती है।”

“क्या पापा होते तब भी मुझे यही जवाब सुनने को मिलता?”…..”लेकिन बेटा, थोड़ा तुम भी तो समझो।……अगर नहीं दे सकते तो कोई जरूरत नहीं आने की। लेकिन आओगे तो मेरा तमाशा बनाने की जरूरत नहीं। यह तो देना ही पड़ेगा आप लोगों को।”

तीन दिन पहले, अनुराधा जी नताशा के घर पहुंची। वहां नताशा के ससुराल वाले सभी मौजूद थे। नताशा ने पूछा, “अरे मां, आप अकेली आई हो? रमन और नेहा कहां हैं?”…….”हां, वो दरअसल तुमने कहा था ना कि मायरा भर सको तो ही आना, नहीं तो प्रॉपर्टी के पेपर तैयार करवा लेना।” यह सुनकर सब लोग अनुराधा जी और नताशा की तरफ देखने लगे। अनुराधा जी ने बोलना जारी रखा, “तो मैं प्रॉपर्टी के पेपर तैयार करवा कर लाई हूं। अब बाकी का हिसाब किताब भी कर दो।”

“कैसा हिसाब किताब?” नताशा ने पूछा।

तुम्हें याद है तुम्हारे पति का काम जब नहीं चलता था, तो तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें पांच लाख रुपए बिजनेस शुरू करने के लिए दिए थे। वह पैसे तुम चुका दो। और हां, रमन मेरी जिम्मेदारी अकेले ही उठा रहा है। तो जब तुम्हें प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी चाहिए, तो जिम्मेदारी में भी बराबर की हिस्सेदारी तुम्हें करनी पड़ेगी।”

“मां, आप इस तरह मेरे ससुराल वालों के सामने मुझे क्यों बेइज्जत कर रही हो?”……”क्योंकि तुम ससुराल वालों के चक्कर में अपने पीहर के मान-सम्मान को भूल चुकी हो। जब तुम मेरी बहू के सामने मुझे शर्मिंदा कर रही थी, तब तुमने सोचा था मेरी माँ पर क्या बीतेगी?”

नताशा ने शर्मिंदा होकर अनुराधा जी से माफी मांगी क्योंकि उसे अपनी गलती का अहसास हो चुका था।

प्रिय आत्मीय जनों यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों में समझदारी और सम्मान महत्वपूर्ण हैं, और अपने परिवार की फिक्र करते हुए उन्हें प्राथमिकता देना चाहिए।

कहानी अच्छी लगे तो Like और Comment जरुर करें। यदि पोस्ट पसन्द आये तो Follow & Share अवश्य करें ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply