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Year Archives: 2024

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होनी प्रबल होती है, उसे कोई टाल नहीं सकता

होनी प्रबल है उसे कोई टाल नहीं सकता.. अभिमन्यु के पुत्र ,राजा परीक्षित थे। राजा परीक्षित के बाद उनके लड़के जनमेजय राजा बने। एक दिन जनमेजय वेदव्यास जी के पास बैठे थे बात बातों में जन्मेजय ने कुछ नाराजगी से...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-131

जय श्री राधे कृष्ण ……. " नाइ सीस करि बिनय बहूता, नीति बिरोध न मारिअ दूता, आन दंड कछु करिअ गोसाई, सबहीं कहा मंत्र भल भाई।। भावार्थ:- उन्होंने सिर नवा कर और बहुत विनय कर के रावण से कहा कि...

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खुशियों का सौदा

खुशियों का सौदा इस बड़े शहर में एक छोटा सा कॉस्मेटिक शॉप है मेरा। पति ने खोला था मेरे नाम पर। झुमकी श्रृंगार स्टोर। आज एक नया जोड़ा आया है मेरे दुकान पर।स्टाफ ने बताया कि सुबह से दूसरी बार...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-130

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना, बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना, सुनत निसाचर मारन धाए, सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए ।। भावार्थ:- हनुमान जी के वचन सुन कर वह बहुत ही कुपित हो गया (और बोला),...

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प्यार और विश्वास की डोर

प्यार और विश्वास की डोर अरे ये कप.....ये कप तो नीचे बहु के कमरे मे सजे हुए थे ...ये यहा कैसे आए .....????? बीना अपने पति रमेश से अचरज भरी नजरो से देखते हुए बोली……वो मे लेकर आया हू रमेश...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-129

जय श्री राधे कृष्ण ……. "मृत्यु निकट आई खल तोही, लागेसि अधम सिखावन मोही, उलटा होइहि कह हनुमाना, मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना ।। भावार्थ:- रे दुष्ट! तेरी मृत्यु निकट आ गयी है । अधम! मुझे शिक्षा देने चला है...

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घोडा और सेब

घोडा 🐴 और सेब🍎 एक राजा था, उसने एक सर्वे करने का सोचा कि मेरे राज्य के लोगों की घर गृहस्थी पति से चलती है या पत्नी से...? उसने एक ईनाम रखा कि "  जिसके घर में पति का हुक्म...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-128

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जदपि कही कपि अति हित बानी, भगति बिबेक बिरति नय सानी, बोला बिहसि महा अभिमानी, मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी ।। भावार्थ:- यद्यपि हनुमान जी ने भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और नीति से सनी हुई...

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माता पार्वती का महल…लंका

माता पार्वती का महल...लंका एक बार की बात है, देवी पार्वती का मन खोह और कंदराओं में रहते हुए ऊब गया। दो नन्हें बच्चे और तरह तरह की असुविधाएँ। उन्होंने भगवान शंकर से अपना कष्ट बताया और अनुरोध किया कि...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-127

जय श्री राधे कृष्ण ……. "मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान, भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ।। भावार्थ:- मोह ही जिसका मूल है ऐसे (अज्ञान जनित), बहुत पीड़ा देने वाले, तम रूप अभिमान का त्याग कर दो और...

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