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Year Archives: 2024

Stories

कर्मों का फल तो झेलना पड़ेगा

कर्मों का फल तो झेलना पड़ेगा  भीष्म पितामह रणभूमिमें शर शैया पर पड़े थे। हल्का-सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी-सी छोड़ देते। ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-282

जय श्री राधे कृष्ण ….. "नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें, मानहु कहा क्रोध तजि तैसें, मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा, जातहिं राम तिलक तेहि सारा ।। भावार्थ:- (दूत ने कहा) हे नाथ ! आपने जैसे कृपा कर के पूछा है,...

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घणी गई थोड़ी रही

घणी गई थोड़ी रही एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था।उसके बाल भी सफ़ेद होने लगे थे।एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-281

जय श्री राधे कृष्ण ….. "की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर, कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ।। भावार्थ:- उनसे तेरी भेंट हुई या वे कानों से मेरा सुयश सुन कर ही...

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सीख

सीख एक बार कि बात है, एक गुरू अपने कुछ शिष्यों के साथ पैदल ही यात्रा पर थे। वे चलते-चलते किसी गांव में पहुंच गए। ये गांव काफी बड़ा था, वहां घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गयी थी। गुरू...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-280

जय श्री राधे कृष्ण ….. "जिन्ह के जीवन कर रखवारा, भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा, कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी, जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी ।। भावार्थ:- और जिनके जीवन का रक्षक कोमल चित्त वाला बेचारा समुद्र बन गया...

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नारद जी और हनुमानजी संवाद

नारद जी और हनुमानजी संवाद एक बार नारद मुनि और राम- भक्त हनुमान के बीच एक रोचक संवाद हुआ! यह संवाद मीठा भी था और भक्तिमयी मणियों से सुसज्जित भी था! हुआ यूँ कि नारद जी को एक भोली सी...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-279

जय श्री राधे कृष्ण ….. "करत राज लंका सठ त्यागी, होइहि जव कर कीट अभागी, पुनि कहु भालु कीस कटकाई, कठिन काल प्रेरित चलि आई ।। भावार्थ:- मूर्ख ने राज्य करते हुए लंका को त्याग दिया। अभागा अब जौ का...

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जन्माष्टमी

जन्माष्टमीकभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था कि राधिका और रुक्मिणी मिली हैं और एक दूजे पर न्योछावर हुई जा रही हैं। सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-278

जय श्री राधे कृष्ण ….. "बिहसि दसानन पूँछी बाता, कहसि न सुक आपनि कुसलाता, पुनि कहु खबरि बिभीषन केरी, जाहि मृत्यु आई अति नेरी ।। भावार्थ:- दसमुख रावण ने हँसकर बात पूछी - अरे शुक! अपनी कुशल क्यों नहीं कहता...

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