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पर मैं अब जाऊंगी कहां

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पर मैं अब जाऊंगी कहां

मनीष ऑफिस से थका हारा घर आया तो देखा उसकी एक साल की बेटी लवी बाहर बरामदे में मिट्टी में सनी हुई खेल रही थी। वही अभी तक तो घर में अंधेरा हो रखा है। सोचा शायद लाइट नहीं होगी, पर आस-पड़ोस में तो लाइट जल रही थी। फिर किसी ने अभी तक घर की लाइट चालू क्यों नहीं की। जबकि घर में अम्मा, पत्नी मीनल मौजूद थे। मेन गेट खोल कर अंदर बरामदे में आया और सबसे पहले अपना बैग एक तरफ रख कर लवी को अपने रुमाल से थोड़ा बहुत पोछकर साफ किया। मन ही मन सोचने लगा कि एक साल की बच्ची अकेली बरामदे में क्या कर रही है? जबकि रोज तो अम्मा इस समय उसके पास होती है।

कुछ गलत की आशंका हुई तो लवी को गोद में उठाकर अंदर घर में आया। और सबसे पहले बाहर वाले कमरे की लाइट जलाई। सामने का नजारा देखकर वो बिल्कुल हैरान हो गया। पूरा कमरा बिखरा पड़ा था। यहां वहां बिस्किट के टुकड़े गिरे पड़े थे और सोफे के पास ही अम्मा जमीन पर बेसुध पड़ी हुई थी। अम्मा को इस हालत में देखकर उसने मीनल को जोर जोर से आवाज लगाई,” मीनल, मीनल, कहां हो तुम? जल्दी आओ, देखो अम्मा को कुछ हो गया है”लेकिन मीनल का कोई जवाब नहीं आया। आखिर लवी को फटाफट जमीन पर बिठाकर अम्मा को उठाने की कोशिश की और सोफे पर लेटा दिया। भागा भागा रसोई में गया और पानी का गिलास ले आया। कुछ छींटे अम्मा के चेहरे पर डाले। तब जाकर अम्मा को थोड़ा बहुत होश आया। और उसने अम्मा को पीने के लिए पानी दिया। जब अम्मा को थोड़ा बहुत होश आया तो मनीष बोला,” क्या हुआ अम्मा, मीनल कहां है? पड़ोस में गई है क्या? या मंदिर गई हुई है? और आपने घर की लाइट क्यों बंद कर रखी थी? लवी अकेले बाहर क्यों खेल रही थी?”मनीष एक के बाद एक सवाल पर सवाल किए जा रहा था। अचानक अम्मा रोने लगी। अम्मा को रोते देख कर मनीष का दिल बैठा जा रहा था।” क्या हुआ अम्मा, बताओ तो सही। क्यों रोए जा रही हो?”अम्मा रोते रोते ही बोली,” वो बहू……”

” क्या हुआ मीनल को?”मनीष परेशान होता हुआ बीच में ही बोल उठा।” बहू घर…. घर छोड़कर चली गई। मैंने उसे खूब रोकने की कोशिश की, पर वो रुकी ही नहीं। मुझसे कह रही थी कि मुझे नहीं रहना आप लोगों के साथ। यहां मेरा कोई भविष्य नहीं है। मैंने उसके पैर तक पड़े बेटा, पर वो मुझे धक्का देकर चली गई। फिर पता नहीं क्या हुआ? आंखों के सामने अंधेरा छा गया। और अब तेरे आने पर ही आंख खुली है” अम्मा की बात सुनकर एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह मनीष चुपचाप जमीन पर ही बैठ गया। फिर आँखों में आंसू भर धीरे से बुदबुदाया,” उसे मेरा ना सही, पर लवी का भी ख्याल नहीं रहा। कोई मां अपनी बेटी को कैसे छोड़ कर जा सकती है?”अपनी बेटे को इस तरह हारा हुआ देखकर अम्मा का कलेजा मुंह को हो आया। अपने आंसू पोछते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली,” उसने कहा कि उसे लवी की कोई जिम्मेदारी नहीं चाहिए। वो अपनी जिंदगी आजाद होकर जीना चाहती है। आप की पोती है आप ही संभालो। मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं”बोलते बोलते अम्मा दोबारा रोने लगी। दोनों मां-बेटे एक दूसरे के आंसू पोछने लगे। अब वो दोनों क्यों रो रहे हैं ये भला नन्हीं लवी क्या पहचाने? बस रो रहे हैं ये देख कर वो भी रो पड़ी। मनीष और मीनल की शादी तीन साल पहले ही तो हुई थी। तब तो सब कुछ ठीक था। अच्छा खासा बिजनेस था। मनीष और उसके पापा दोनों मिलकर बिजनेस बहुत अच्छे से संभाल रहे थे। पैसा भी बहुत था। कोई कमी नहीं थी। संपन्नता के बावजूद भी मनीष के मम्मी पापा जमीन से जुड़े हुए थे। काफी सादी जिंदगी जीते थे।

मीनल एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी। मीनल की शादी मनीष के साथ उसकी बुआ ने करवाई थी। घर में नौकर चाकर काम करते थे। इसलिए घर में करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता था। इसलिए अम्मा जी ने उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा। मीनल ने अपनी पढ़ाई शुरू तो कर दी, पर उसका पढ़ने में मन नहीं लगता। जब घर में सब कुछ था, तो फिर भला पढ़ाई करके करना क्या था? कोई नौकरी तो उसे करनी नहीं थी। इसलिए कॉलेज के नाम से घर से निकल तो जाती, पर क्लास बंक कर कभी कैंटीन में, तो कभी मूवी देखने,तो कभी शाॅपिंग करने अपनी नई सहेलियों के साथ बाहर घूमने निकल जाती।

मीनल को भी धीरे-धीरे संपन्नता की आदत हो गई थी। आए दिन वो मनीष से पैसे मांगती। पैसों की कोई कमी नहीं थी तो मनीष भी कभी उससे पूछता नहीं। अम्मा मनीष को टोकती, “बेटा जिस इंसान ने इतना पैसा नहीं देखा हो, वो उसे संभाल नहीं पाएगा। कुछ तो अनुशासन में होना ही चाहिए। वो पैसे मांगती है और तू दे देता है। ये तक भी नहीं पूछता कि वो पैसा कहां खर्च कर रही है”मनीष भी हंस कर टाल देता,”अम्मा, वो बाहर जाती है। तो उसे भी हाथ खर्चे की जरूरत होती है “” बेटा हाथ खर्चे में और फिजूल खर्चे में फर्क होता है। जो तू समझ नहीं रहा”अम्मा की बात सुनकर मनीष हंस देता,” अम्मा उसी के लिए तो कमा रहा हूं। इतना कमाने के बाद भी अगर पत्नी पैसों पैसों के लिए परेशान हो तो फिर मेरे कमाने का क्या फायदा? और फिर वो कॉलेज जाती है तो दोस्तों के साथ थोड़ा बहुत तो चिल करेगी ही ना”

बेटे के आगे अम्मा कुछ कह नहीं पाती।पिछले साल जब लवी का जन्म हुआ, तब भी बहुत बड़ा आयोजन किया था।लेकिन दस महीने पहले फैक्ट्री में आग लग गई, जिसके कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा। ऊपर से अभी तक इंश्योरेंस का क्लेम तक नहीं मिला क्योंकि किसी ने गलत अफवाह फैला दी कि जानबूझकर फैक्ट्री में आग लगाई गई है। बस तब से इन्वेस्टिगेशन चल रही है। इसी बीच तीन महीने पहले मनीष के पापा का हार्ट अटैक से देहांत हो गया। सब कुछ बिखर गया। लेनदार तो अपने कर्ज लेने के लिए आने लगे, पर देनदार सारे मुंह छुपा कर बैठ गए। आखिर थक हार कर पिछले महीने ही मनीष ने बंगला गाड़ी सब कुछ बेच कर कर्जदारों का भुगतान किया। उसमें भी अभी कुछ कर्ज बाकी रह गया।मनीष सब कुछ संभालने की कोशिश कर रहा था। वापस सब कुछ समेटना चाहता था। पर उसे ये अंदाजा नहीं रहा कि इस समेटने के चक्कर में उसकी पत्नी उससे छुटे जा रही है। जब से इस किराए के घर में आए हैं तब से हालात और बदतर हो गए।

मीनल को नौकर चाकर की आदत लग चुकी थी तो घर के काम तो उससे होते नहीं थे। अम्मा उसकी पूरी मदद करने की कोशिश करती, पर वो तो जरा जरा सी बात पर चिढ़ जाती थी। यहां तक की लवी को भी नहीं संभालती। अब तो आए दिन वो मनीष से भी लड़ पड़ती थी। “  कब तक रहना पड़ेगा ऐसी हालत में मुझे। मुझसे नहीं होते घर के कामकाज। कम से कम एक आया तो रख लो लवी के लिए। कैसे संभालू इसे? मैंने कोई बच्चे नहीं संभाले पहले”

” कैसी बात कर रही हो तुम? मीनल तुमसे ज्यादा लवी तो अम्मा के पास रहती है। और वो तुम्हारी बेटी है। क्या तुम उसे संभाल नहीं सकती?”” क्या जिंदगी हो गई है मेरी? पैसे पैसे से मोहताज कर दिया है तुमने मुझे। इसीलिए शादी करके लाए थे क्या मुझे?”उसकी बात सुनकर मनीष हक्का-बक्का रह गया।” तुम जिस घर से निकल कर इस घर में आई थी ना, उस घर में तो इतनी सुविधा नहीं थी। अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। तुम थोड़ा तो सपोर्ट करो। मैं वैसे ही परेशान होकर ऑफिस से घर आता हूं। और तुम फिर ये सब शुरू कर देती हो”मीनल पैर पटकती हुई अपने कमरे में जाकर बैठ जाती। ना खाना परोसती, और ना ही कोई और बात। अम्मा ही लवी को खाना खिला पिला कर अपने पास सुला लेती। लेकिन आज वो इतना बड़ा कदम उठा लेगी, उसकी उम्मीद उसे बिल्कुल नहीं थी। आज वो मनीष का घर छोड़कर हमेशा के लिए दहलीज लांघ कर चली गई। खैर, मनीष ने हिम्मत कर उसके मायके फोन किया तो पता चला वो तो वहां भी नहीं आई। उसकी कुछ सहेलियों से पूछा तो पता चला कि कोई तरुण नाम का लड़का है। वो उसके साथ गई है। ये सुनते तो मनीष तो मनीष मीनल के पापा तक बिल्कुल ही शांत हो गये। आखिर बेटी की ऐसी करतूत से उन्हें भी बहुत धक्का लगा था। उन्हें मीनल के ऐसे कदम की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। पैसों की ऐसी क्या चादर ओढ़ी उनकी बेटी ने जो परिवार को परिवार ही नहीं समझा। यहां तक की एक साल की बेटी को छोड़कर चली गई। पर जिंदगी कहीं रूकती है क्या? इधर अम्मा लवी और घर दोनों को संभालती और उधर मनीष वापस सबकुछ समेटने की कोशिश करने लगा। बस उस पर एक धुन सवार हो चुकी थी कि उसे पैसा कमाना है। आखिर उसकी मेहनत रंग लाई। दो महीने बाद जाकर फैक्ट्री का केस मनीष जीत ही गया और इंश्योरेंस क्लेम पास हो गया। क्लेम का जो पैसा आया, उसमें से सबसे पहले जो थोड़े बहुत कर्जदार थे, उनका कर्जा चुका दिया। बाकी बचे पैसों में से एक फ्लैट खरीदा और वहां शिफ्ट हो गए। और बाकी के पैसों से नया काम धंधा शुरू किया। बिजनेस का अच्छा खासा नॉलेज और मार्केट पर पकड़ होने के कारण मनीष का ये काम भी चल निकला।

धीरे-धीरे वो तरक्की कर ही रहा था कि एक दिन अचानक मीनल लौट कर आ गई। उसे अचानक देखकर मनीष हैरान रह गया। आखिर छह महीने बाद ही लौट कर आने का अब क्या तुक था। मीनल अब उससे माफी मांगते हुए दोबारा उसकी जिंदगी में अपनी जगह चाहती थी। लेकिन मनीष ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया। इस पर मीनल ने अपने माता-पिता को मनीष के घर ही बुला लिया। वो लोग घर आए भी, पर उन्होंने साथ मनीष का ही दिया। ” पर मैं अब जाऊंगी कहां? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। तरुण ने भी मुझे साथ रखने से इनकार कर दिया। और फिर मैं लवी की मां हूं। उस पर मेरा हक है” मीनल अचानक लवी पर हक जताते हुए बोली। लेकिन लवी तो अपने आप उससे छुड़ाने की कोशिश करने लगी। भला डेढ़ साल के बच्ची उसे कैसे पहचानेगी। अपने आप को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करती हुई लगी रोने लगी यह देखकर मनीष बोला,” तुम, और लवी की मां। माफ करना तुम्हें तो पता ही नहीं है बच्चे कैसे पाले जाते हैं। वो बच्ची तक खुद को तुमसे छुड़ा रही है। कभी गोद में प्यार से लिया भी था उसे? जिस रास्ते आई उसी रास्ते से चली जाओ। तुम्हारा इस घर पर अब कोई हक नहीं है। और ना ही हमारी जिंदगी में तुम्हारा कोई लेना देना” मीनल ने बड़ी उम्मीद के साथ अपने पापा मम्मी की तरफ देखा। लेकिन इस बार उसके पापा बोले,” हमसे कोई उम्मीद मत करना। ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था। कोई छोटी बच्ची तो नहीं थी जो तुम्हें कोई बहका कर ले गया हो। एक बच्ची की मां थी तुम। अरे परिवार ना सही, अपनी बच्ची को देखकर भी तुम्हारा दिल नहीं पसीजा जा था कि कैसे उसे छोड़कर जा रही हूं मैं”

आखिर जब किसी ने साथ नहीं दिया तो मीनल को वहां से चुपचाप जाना पड़ा। कुछ दिनों बाद ही उसका और मनीष का तलाक भी हो गया। मीनल जहां कोई छोटी-मोटी नौकरी कर अपना गुजारा जैसे तैसे करती है, वही मनीष अब अपनी अम्मा और अपनी बेटी के साथ खुश है।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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