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मनहूस पेड़

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मनहूस पेड़

वर्षों की मेहनत के बाद एक किसान ने एक सुन्दर बागीचा बनाया . बागीचे के बीचो-बीच एक बड़ा सा पेड़ था जिसकी छाँव में बैठकर सुकून का अनुभव होता था . ….एक दिन किसान का पड़ोसी आया , बागीचा देखते ही उसने कहा , “ वाह ! बागीचा तो बहुत सुन्दर है , पर तुमने बीच में ये मनहूस पेड़ क्यों लगा रखा है ?”

“क्या मतलब ?”, किसान ने पुछा

“ अरे क्या तुम नहीं जानते , इस प्रजाति के पेड़ मनहूस माने जाते हैं , ये जहाँ होते हैं , वहां अपने साथ दुर्भाग्य लाते हैं … इस पेड़ को जल्दी से जल्दी यहाँ से हटाओ …”, पडोसी बोला ……यह बोलकर पडोसी तो चला गया पर किसान परेशान हो गया , उसे डर लगने लगा कि कहीं इस पेड़ की वजह से उसके साथ कुछ अशुभ न हो जाए …..अगले ही दिन उसने वो पेड़ काट डाला

पेड़ बड़ा था , उसकी कटी लकड़ियाँ पूरे बागीचे में जहाँ -तहाँ इकठ्ठा हो गयीं …..अगले दिन फिर वही पड़ोसी आया और बोला , “ ओह्ह्हो .. इतने सुन्दर बागीचे में ये बेकार की लकड़ियाँ क्यों इकठ्ठा कर रखी हैं … ऐसा करो इन्हे मेरे अहाते में रखवा दो ..”…लकड़ियाँ रखवा दी गयीं .

किसान ने पडोसी की बातों में आकर पेड़ तो कटवा दिया , पर अब उसे एहसास होने लगा कि पडोसी ने लकड़ियों की लालच में आकर उससे ऐसा करवा दिया ….दुखी मन से वह महान गुरु लाओ-त्ज़ु के पास पहुंचा और पूरी बात बता दी ……

लाओ-त्ज़ु मुस्कुराते हुए बोले , “ तुम्हारे पड़ोसी ने सच ही तो कहा था , वो पेड़ वास्तव में मनहूस था , तभी तो वो तुम्हारे जैसे मूर्ख के बागीचे में लगा था …..यह सुन किसान का मन और भी भरी हो गया .

“ उदास मत हो “, लाओ-त्ज़ु बोले ,” अच्छी बात ये है कि तुम अब पहले जैसे मूर्ख नहीं रहे … तुमने पेड़ तो गँवा दिया पर उसके बदले में एक कीमती सबक सीख लिया है … जब तक तुम्हारी अपनी समझ किसी बात को ना स्वीकारे तब तक दुसरे की सलाह पर कोई कदम मत उठाना .”

दोस्तों , बहुत बार हम दुसरो की देखा देखी या किसी की सलाह पर कोई decision ले लेते हैं . जैसे कि कोई अपने friend की वजह से कोई subject या college chose कर लेता है , या किसी की सलाह पर कोई multi-level marketing company से जुड़ जाता है … share market में पैसा लगा देता है , etc…. हो सकता है ऐसा करना कुछ लोगों के लिए फायदेमंद रहता हो पर ज्यादातर मामलों में नतीजा बुरा ही होता है . इसलिए हमें दूसरों की सलाह पर अमल करने से पहले अपनी समझ का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए ..

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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