जय श्री राधे कृष्ण …..
“निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ, यह चरित कलि मल हर जथामति दास तुलसी गायऊ ।।
सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना ।
तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना ।।
भावार्थ:– समुद्र अपने घर चला गया । श्री रघुनाथ जी को यह मत (उसकी सलाह) अच्छा लगा । यह चरित्र कलयुग के पापों को हरने वाला है। इसे तुलसीदास ने अपनी बुद्धि के अनुसार गाया है। श्री रघुनाथ जी के गुण समूह सुख के धाम, संदेह का नाश करने वाले और विषाद का दमन करने वाले हैं । अरे मूर्ख मन ! तू संसार का सब आशा – भरोसा त्याग कर निरंतर इन्हें गा और सुन…!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..