वाल्मीकि रामायण भाग 23
वाल्मीकि रामायण भाग 23 भरत के साथ गुह, शत्रुघ्न और सुमन्त्र भी श्रीराम के आश्रम की ओर चले। कुछ ही दूरी पर उन सबको अपने भाई की पर्णकुटी व झोपड़ी दिखाई दी। पर्णशाला के सामने लकड़ी के टुकड़े रखे हुए...
वाल्मीकि रामायण भाग 23 भरत के साथ गुह, शत्रुघ्न और सुमन्त्र भी श्रीराम के आश्रम की ओर चले। कुछ ही दूरी पर उन सबको अपने भाई की पर्णकुटी व झोपड़ी दिखाई दी। पर्णशाला के सामने लकड़ी के टुकड़े रखे हुए...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "मकर उरग झष गन अकुलाने, जरत जंतु जलनिधि जब जाने, कनक थार भरि मनि गन नाना, बिप्र रूप आयउ तजि माना ।। भावार्थ:- मगर, सौंप तथा मछलियों के समूह व्याकुल हो गए। जब समुद्र ने...
वाल्मीकि रामायण भाग 22 भरत के पूछने पर कैकेयी ने कहा, “बेटा! राजकुमार राम वल्कल-वस्त्र पहनकर दण्डकवन में चले गए और लक्ष्मण ने भी उन्हीं का अनुसरण किया।” यह सुनकर भरत डर गए कि कहीं श्रीराम ने कोई अपराध तो...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा, यह मत लछिमन के मन भावा, संधानेउ प्रभु बिसिख कराला, उठी उदधि उर अंतर ज्वाला ।। भावार्थ:- ऐसा कह कर श्री रघुनाथ जी ने धनुष चढ़ाया। यह मत लक्ष्मण जी...
वाल्मीकि रामायण भाग 21 अगले दिन प्रातःकाल महाराज दशरथ के सेवक उन्हें जगाने आए। सूत, मागध, वन्दीजन और गायक उन्हें जगाने के लिए मधुर स्वर में गायन करने लगे। उनका गायन सुनकर आस-पास के वृक्षों पर बैठे पक्षी तथा राजमहल...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "ममता रत सन ग्यान कहानी, अति लोभी सन बिरति बखानी, क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा, ऊसर बीज बएँ फल जथा ।। भावार्थ:- ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का...
वाल्मीकि रामायण भाग 20 प्रातःकाल श्रीराम ने लक्ष्मण को जगाकर कहा, “भाई! मीठी बोली बोलने वाले जंगली पक्षियों का कलरव सुनो। अब हमारे प्रस्थान के योग्य समय आ गया है।” फिर यमुना के शीतल जल में स्नान करके वे तीनों...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "लछिमन बान सरासन आनू, सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू, सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती, सहज कृपन सन सुंदर नीती ।। भावार्थ:- हे लक्ष्मण ! धनुष - बाण लाओ, मैं अग्निबाण से समुद्र को सोख डालूँ...
वाल्मीकि रामायण भाग 19 वत्सदेश (प्रयाग) के वन में प्रवेश करने पर उन दोनों भाइयों ने भूख लगने पर कन्द-मूल आदि लेकर एक वृक्ष के नीचे ठहरने के लिए चले गए। वहाँ बैठने पर श्रीराम ने अपने भाई से कहा,...
जय श्री राधे कृष्ण ….. "बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति ।। भावार्थ:- इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता । तब श्री राम...