जय श्री राधे कृष्ण …..
“सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे, छमहु नाथ सब अवगुन मेरे, गगन समीर अनल जल धरनी, इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ।।
भावार्थ:– समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़ कर कहा- हे नाथ ! मेरे सब अवगुण (दोष) क्षमा कीजिए । हे नाथ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी इन सब की करनी स्वभाव से ही जड़ है ….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..