जय श्री राधे कृष्ण …..
“काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच, बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच ।।
भावार्थ:– (काकभुशुण्डि जी कहते हैं), हे गरुड़ जी! सुनिये । चाहे कोई करोड़ों उपाय कर के सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है। नीच विनय से नहीं मानता । वह डाँटने पर ही झुकता है (रास्ते पर आता है)……!!
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..