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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-303

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जय श्री राधे कृष्ण …..

रिषि अगस्ति कीं साप भवानी, राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी, बंदि राम पद बारहिं बारा, मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा ।।

भावार्थ:– (शिव जी कहते हैं) हे भवानी ! वह ज्ञानी मुनि था, अगस्त ऋषि के शाप से राक्षस हो गया था । बार-बार श्री राम जी के चरणों की वंदना करके वह मुनि अपने आश्रम को चला गया…. ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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