जय श्री राधे कृष्ण …..
“बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस, राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस ।।
भावार्थ:– (पत्रिका में लिखा था) अरे मूर्ख ! केवल बातों से ही मन को रिझा कर अपने कुल को नष्ट -भ्रष्ट न कर । श्री राम जी से विरोध कर के तू विष्णु, ब्रह्मा और महेश की शरण जाने पर भी नहीं बचेगा…….!!
की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग, होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग ।।
भावार्थ:– या तो अभिमान छोड़ कर अपने छोटे भाई विभीषण की भांति प्रभु के चरण – कमलों का भ्रमर बन जा । अथवा रे दुष्ट! श्री राम जी के बाण रूपी अग्नि में परिवार सहित पतिंगा हो जा (दोनों में से जो अच्छा लगे सो कर)…….!!
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..