जय श्री राधे कृष्ण …..
“सहज भीरु कर बचन दृढा़ई, सागर सन ठानी मचलाई, मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई, रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई ।।
भावार्थ:– स्वाभाविक ही डरपोक विभीषण के वचन को प्रमाण करके उन्होंने समुद्र से मचलना (बालहठ) ठाना है। अरे मूर्ख ! झूठी बड़ाई क्या करता है ! बस, मैंने शत्रु (राम) के बल और बुद्धि की थाह पा ली…..!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..