जय श्री राधे कृष्ण …..
“परम क्रोध मीजहिं सब हाथा, आयसु पै न देहिं रघुनाथा, सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला, पूरहिं न त भरि कुधर बिसाला ।।
भावार्थ:– सब के सब अत्यंत क्रोध से हाथ मींजते हैं । पर श्री रघुनाथ जी उन्हें आज्ञा नहीं देते । हम मछलियों और सांपों सहित समुद्र को सोख लेंगे । नहीं तो बड़े बड़े पर्वतों से उसे भर कर पूर (पाट) देंगे… !!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..