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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-289

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जय श्री राधे कृष्ण …..

परम क्रोध मीजहिं सब हाथा, आयसु पै न देहिं रघुनाथा, सोषहिं सिंधु सहित झष ब्याला, पूरहिं न त भरि कुधर बिसाला ।।

भावार्थ:– सब के सब अत्यंत क्रोध से हाथ मींजते हैं । पर श्री रघुनाथ जी उन्हें आज्ञा नहीं देते । हम मछलियों और सांपों सहित समुद्र को सोख लेंगे । नहीं तो बड़े बड़े पर्वतों से उसे भर कर पूर (पाट) देंगे… !!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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