जय श्री राधे कृष्ण …..
“अस मैं सुना श्रवन दसकंधर, पदुम अठारह जूथप बंदर, नाथ कटक महँ सो कपि नाहीं, जो न तुम्हहि जीतै रन माहीं ।।
भावार्थ:– हे दशग्रीव! मैंने कानों से ऐसा सुना है कि अठारह पद्म तो अकेले वानरों के सेनापति हैं । हे नाथ ! उस सेना में ऐसा कोई वानर नहीं है, जो आपको रण में ना जीत सके…. !!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..