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भगवान श्री कृष्ण को क्यों प्रिय है माखन-मिश्री

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भगवान श्री कृष्ण को क्यों प्रिय है माखन-मिश्री

माखन क्या है ? मन ही माखन है। भगवान को मन रूपी माखन का भोग लगाना है। क्योंकि भोग तो भगवान लगाते है भक्त तो प्रसाद ग्रहण करता है, इसलिए हम भोक्ता न बने, बस मन माखन जैसा कोमल हो, कठोर न हो। कहते है न “संत ह्रदय नवनीत समाना”, अर्थात संतो का ह्रदय नवनीत अर्थात माखन के जैसा कोमल होता है, इसलिए भगवान संतो के ह्रदय में वास करते है। और वे उनके ह्रदय को ही चुराते हैं। अगर हमारा मन नवनीत जैसा है, तो भगवान तो माखन चोर हैं ही। वह हमारा मन चुरा ले जायेगे।

माखन को नवनीत भी कहते है ये नवनीत बहुत सुन्दर शब्द है। नवनीत का एक अर्थ है जो नित्य नया है। मन भी रोज नया चाहिए। बासी मक्खन भगवान को अच्छा नहीं लगता। इसलिए शोक और भविष्य की चिंता से मुक्त हो जाओ। पर ऐसा कब होगा, जब वर्तमान में विश्वास कायम करेगे।

कहते है न – “राम नाम लड्डू, गोपाल नाम खीर है,   कृष्ण नाम मिश्री, तो घोर घोर पी।”

अर्थात राम जी का नाम लड्डू जैसा है- जिस प्रकार यदि लड्डू एक साथ पूरा खाया जाए तभी आनंद आता है, और राम का नाम भी पूरा मुंह खोलकर कहे तभी आनंद आता है।

इसी प्रकार गोपाल नाम खीर है- अर्थात यदि हम गोपाल-गोपाल-गोपाल जल्दी-जल्दी कहें, तभी आनंद आता है मानो जैसे खीर का सरपट्टा भर रहे हो।

इसी तरह कृष्ण नाम मिश्री जैसे मिश्री होती है- यदि मिश्री को हम मुंह में रख कर एकदम से चबा जाएंगे तो उतना आनंद नहीं आएगा, जितना आनंद मुह में रख कर धीरे-धीरे चूसने में आएगा। और जब हम मिश्री को मुंह में रखकर चूसते हैं तो हमारा मुंह भी थोडा टेढ़ा हो जाता है। मिश्री का स्वाद मीठा होता है इस प्रकार मीठे स्वाद की तरह ही मिश्री भी वाणी और व्यवहार में मिठास घोलने का संदेश देती है। जिस तरह इसको चूसने से अधिक आनंद मिलता है। ठीक उसी तरह मीठे बोल भी निरंतर सुख ही देते हैं।

इसी तरह कृष्ण जी का नाम है धीरे-धीरे कहो मानो मिश्री चूस रहे हो, तभी आनंद आता है। और जब हम कृष्ण कहते है तब हमारा मुंह भी थोड़ा सा टेढ़ा हो जाता है।

कान्हा को ”माखन-मिश्री” बहुत ही प्रिय है। मिश्री का एक महत्वपूर्ण गुण यह है की जब इसे माखन में मिलाया जाता है तो माखन का कोई भी हिस्सा नहीं बचता, उसके प्रत्येक हिस्से में मिश्री की मिठास समां जाती है। इस प्रकार से कृष्ण को प्रिय ”माखन-मिश्री” से तात्पर्य है, ऐसा ह्रदय जो प्रेम रूपी मिठास संपूर्णतः पूरित हो।

मिश्री के माखन के साथ खाने की बात है तो इसका अर्थ यह है कि माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है। लेकिन माखन स्वाद में फीका भी होता है। उसके साथ मीठी मिश्री खाने का अर्थ है कि जीवन में प्रेम रूपी माखन तो हो पर वह प्रेम फीका यानि दिखावे से भरा न हो, बल्कि उस प्रेम में भावना और समर्पण की मिठास भी हो। ऐसा होने पर ही जीवन के वास्तविक आनंद और सुख पाया जा सकता है।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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