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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-265

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जय श्री राधे कृष्ण …..

कह लंकेस सुनहु रघुनायक, कोटि सिंधु सोषक तव सायक, जद्यपि तदपि नीति असि गाई, बिनय करिअ सागर सन जाई ।।

भावार्थ:– विभीषण जी ने कहा – हे रघुनाथ जी! सुनिये, यद्यपि आपका एक बाण ही करोड़ों समुद्रों को सोखने वाला है, (सोख सकता है) तथापि नीति ऐसी कहीं गई है (उचित यह होगा) कि (पहले) जाकर समुद्र से प्रार्थना की जाय..!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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