जय श्री राधे कृष्ण …..
“सुनु कपीस लंकापति बीरा, केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा, संकुल मकर उरग झष जाती, अति अगाध दुस्तर सब भांती ।।
भावार्थ:– हे वीर वानर राज सुग्रीव और लंकापति विभीषण ! सुनो, इस गहरे समुद्र को किस प्रकार पार किया जाए ? अनेक जाति के मगर, सांप और मछलियों से भरा हुआ यह अत्यंत अथाह समुद्र पार करने में सब प्रकार से कठिन है…!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..