जय श्री राधे कृष्ण …..
“रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड, जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड ।।
भावार्थ:– श्री राम जी ने रावण के क्रोध रूपी अग्नि में जो अपनी (बिभीषण की) श्वास (वचन) रूपी पवन से प्रचंड हो रही थी, जलते हुए विभीषण को बचा लिया और उसे अखंड राज्य दिया…..!!
जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिए दस माथ, सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ ।।
भावार्थ:– शिव जी ने जो संपत्ति रावण को दसों सिरों की बलि देने पर दी थी, वही संपत्ति श्री रघुनाथ जी ने विभीषण को बहुत सकुचते हुए दी….. ।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
