जय श्री राधे कृष्ण …..
“अब कृपाल निज भगति पावनी, देहु सदा सिव मन भावनी, एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा, मागा तुरत सिंधु कर नीरा ।।
भावार्थ:– अब तो हे कृपालु! शिव जी के मन को सदैव प्रिय लगने वाली अपनी पवित्र भक्ति मुझे दीजिए। ‘एवमस्तु’ (ऐसा ही हो) कह कर रणधीर प्रभु श्री राम जी ने तुरंत ही समुद्र का जल माँगा……!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
