जय श्री राधे कृष्ण …..
“अस सज्जन मम उर बस कैसें, लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें, तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें, धरउँ देह नहिं आन निहोरें ।।
भावार्थ:– ऐसा सज्जन मेरे हृदय में कैसे बसता है, जैसे लोभी के हृदय में धन बसा करता है। तुम सरीखे संत ही मुझे प्रिय हैं। मैं और किसी के निहोरे से (कृतज्ञता वश) देह धारण नहीं करता…!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
