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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-251

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जय श्री राधे कृष्ण …..

सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ, जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ, जौं नर होइ चराचर द्रोही, आवै सभय सरन तकि मोही ।।

भावार्थ:– (श्री राम जी ने कहा) हे सखा! सुनो, मैं तुम्हें अपना स्वभाव कहता हूँ, जिसे काकभुशुंडि, शिव जी और पार्वती जी भी जानती हैं । कोई मनुष्य (संपूर्ण) जड़-चेतन जगत का द्रोही हो, यदि वह भी भयभीत हो कर मेरी शरण तक आ जाए…..!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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