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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-248

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जय श्री राधे कृष्ण …..

तब लगि हृदयँ बसत खल नाना, लोभ मोह मच्छर मद माना, जब लगि उर न बसत रघुनाथा, धरें चाप सायक कटि भाथा ।।

भावार्थ:– लोभ, मोह, मत्सर (डाह), मद और मान आदि अनेकों दुष्ट तभी तक हृदय में बसते हैं, जब तक कि धनुष – बाण और कमर में तरकस धारण किए हुए श्री रघुनाथ जी ह्रदय में नहीं बसते……!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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