जय श्री राधे कृष्ण …..
“तब लगि हृदयँ बसत खल नाना, लोभ मोह मच्छर मद माना, जब लगि उर न बसत रघुनाथा, धरें चाप सायक कटि भाथा ।।
भावार्थ:– लोभ, मोह, मत्सर (डाह), मद और मान आदि अनेकों दुष्ट तभी तक हृदय में बसते हैं, जब तक कि धनुष – बाण और कमर में तरकस धारण किए हुए श्री रघुनाथ जी ह्रदय में नहीं बसते……!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..