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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-246

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जय श्री राधे कृष्ण …..

बरु भल बास नरक कर ताता, दुष्ट संग जनि देइ बिधाता, अब पद देखि कुसल रघुराया, जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया *।।

भावार्थ:– हे तात! नरक में रहना वरन् अच्छा है, परंतु विधाता दुष्ट का संग (कभी) न दे।
(विभीषण जी ने कहा) हे रघुनाथ जी ! अब आप के चरणों का दर्शन कर कुशल से हूँ, जो आप ने अपना सेवक जान कर मुझ पर दया की है……!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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