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जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो मिलेगा कल

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जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो मिलेगा कल !

एक गाँव के एक जमींदार ठाकुर बहुत वर्षों से बीमार थे। इलाज करवाते हुए कोई डॉक्टर कोई वैद्य नहीं छोड़ा कोई टोने टोटके करने वाला नहीं छोड़ा। लेकिन कहीं से भी थोड़ा सा भी आराम नहीं आया !एक संत जी गाँव में आये उनके दर्शन करने वो ज़मींदार भी वहाँ गया और उन्हें प्रणाम किया !  उसने बहुत दुखी मन से कहा – महात्मा जी मैं इस गाँव का जमींदार हूँ का सैंकड़ों बीघे जमीन है इतना सब कुछ होने के बावजूद मुझे एक लाइलाज रोग है जो कहीं से भी ठीक नहीं हो रहा !

महात्मा जी ने पूछा भाई, क्या रोग है आपको ….जी मुझे मल त्याग करते समय बहुत खून आता है और इतनी जलन होती है जो बर्दाश्त नहीं होती।  ऐसा लगता है मेरे प्राण ही निकल जायेंगे।

आप कुछ मेहरबानी करो महात्मा जी बाबा ने आँख बंद कर ली शांत बैठ गये थोड़ी देर बाद बोले -बुरा तो नहीं मानोगे एक बात पूछूँ ? नहीं महाराज पूछिये !

तुमने कभी किसी का दिल इतना ज़्यादा तो नहीं दुखाया कि उसने तुम्हें जी भरके बद्दुआऐं दी हों जिसका दण्ड आज तुम भोग रहे हो ?….तुम्हारे दुःख देने से वो इतना अधिक दुखी हुआ हो जिसके कारण आज तुम इतनी पीड़ा झेल रहे हो ? नहीं बाबा ! जहाँ तक मुझे याद है, मैंने तो कभी किसी का दिल नहीं दुखाया।

याद करो और सोचो कभी किसी का हक तो नहीं छीना, किसी की पीठ में छुरा तो नहीं मारा किसी की रोज़ी रोटी तो नहीं छीनी ? किसी का हिस्सा ज़बरदस्ती, तुमने खुद तो नहीं संभाला हुआ ?…..महात्मा जी की बात पूरी होने पर वो ख़ामोश और शर्मसार हो कर बोला।

जी मेरी एक विधवा भाभी है जो कि इस वक्त अपने मायके में रहती है वो जमीन में से अपना हिस्सा मांगती थी। यह सोचकर मैंने उसे कुछ भी नहीं दिया कि कल को ये सब कुछ अपने भाईयों को ही दे देगी इसका क्या पता ?

बाबा ने कहा -आज से ही उसे हर महीने सौ रूपए भेजने शुरू करो ! यह उस समय की बात है जब सौ रूपए में पूरा परिवार पल जाता था ! उसने कुछ रूपए भेजना शुरू कर दिया ! दो तीन हफ़्तों के बाद उसने बाबा से आकर कहा – जी मै पचहत्तर प्रतिशत ठीक हूँ !

महात्मा जी ने सोचा कि इसे तो पूरा ठीक होना चाहिये था ऐसा क्यों नहीं हुआ ?…उससे पूछा तुम कितने रूपए भेजते हो ?

जी पचहत्तर रूपए हर महीने भेजता हूँ

इसी कारण तेरा रोग पूरा ठीक नहीं हुआ !सन्त जी ने कहा उसका पूरा हक उसे इज़्जत से बुला कर दे दो, वो अपने पैसे को जैसे मर्जी खर्च करे, अपनी ज़मीन जिसे चाहे दे दे । यह उसकी मिल्कीयत है इसमें तुम्हारा कोई दख़ल नहीं है !

जानते हो वो कितना रोती रही है, जलती रही है तभी आपको इतनी जलन हो रही है ! ज़रा सोचो, मरने के बाद हमारे साथ क्या जायेगा ?….

ज़मींदार को बहुत पछतावा हुआ उसने फौरन ही अपनी विधवा भाभी और उसके भाईयों को बुलाकर, सारे गाँव के सामने, उसकी ज़मीन, उसके हक का पैसा उसे दे दिया और हाथ जोड़कर अपने ज़ुल्मों की माफी माँगी।

उसकी भाभी ने उसे माफ कर दिया और उसके परिवार को खूब आशीर्वाद दिये। जमींदार का रोग शीघ्र ही पूरी तरह से ठीक हो गया ! अगर आपको भी ऐसा कोई असाध्य रोग है तो ज़रूर सोचना* *कहीँ मैंने किसी का हक तो नहीं छीना है ?…

किसी की पीठ में छुरा तो नहीं घोंपा है ? किसी का इतना दिल तो नहीं दुखाया हुआ कि वो बेचारा इतना बेबस था कि तुम्हारे सामने कुछ कहने की हिम्मत भी ना कर सका होगा ?…लेकिन उस बेचारे के दिल से आहें निकली होंगी जो आपके अंदर रोग पैदा कर रही है जलन पैदा कर रही हैं।

याद रखो, परमात्मा की लाठी बिल्कुल बे आवाज़ है।

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Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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