जय श्री राधे कृष्ण …..
“नाथ दसानन कर मैं भ्राता, निसिचर बंस जनम सुरत्राता, सहज पापप्रिय तामस देहा, जथा उलूकहि तम पर नेहा ।।
भावार्थ:– हे नाथ ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ । हे देवताओं के रक्षक ! मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है । मेरा तामसी शरीर है, स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय हैं, जैसे उल्लू को अन्धकार पर सहज स्नेह होता है…….!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
