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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-238

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जय श्री राधे कृष्ण …..

सादर तेहिं आगें करि बानर, चले जहाँ रघुपति करुनाकर, दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता, नयनानंद दान के दाता।।

भावार्थ:– विभीषण जी को आदर सहित आगे कर के वानर फिर वहाँ चले, जहाँ करूणा की खान श्री रघुनाथ जी थे। नेत्रों को आनंद का दान देने वाले (अत्यंत सुखद) दोनों भाइयों को विभीषण जी ने दूर ही से देखा….!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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