सुख का आधार
जिस प्रकार वृक्षारोपण करने से आपको शीतल छाया स्वतः प्राप्त हो जाती है उसी प्रकार शुभ कार्य करने से समय आने पर सुख की प्राप्ति भी स्वतः हो जाती है। हमारे द्वारा संपन्न ऐसा कोई शुभ और सद्कार्य नहीं जिसके परिणामस्वरूप प्रकृति द्वारा हमें उचित पुरस्कार देकर सम्मानित ना किया जाए। कुँआ खोदा जाता है तो फिर हमारी प्यास बुझाने के लिए शीतल जल की प्राप्ति भी स्वतः हो जाती है।
जब-जब हमारे द्वारा किसी और की भलाई के लिए निस्वार्थ भाव से कोई कार्य किया जाता है, तब-तब हमारे द्वारा वास्तव में अपनी भलाई की ही आधारशिला रखी जा रही होती है। आज हम किसी जरूरतमंद के लिए सहायक बनेंगे तो आवश्यकता पड़ने पर कल हमारी सहायता और सहयोग के लिए भी कई हाथ खड़े होंगे।
सबकी प्रसन्नता के लिए जीने का भाव ही परमात्मा को प्रसन्न करने का मूलमंत्र भी है।
नेक कर्म और प्रभु नाम स्मरण सहायक हों सभी के
जय श्रीराम