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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-232

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जय श्री राधे कृष्ण …..

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू, आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू, सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं, जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ।।

भावार्थ:– जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, शरण में आने पर मैं उसे भी नहीं त्यागता । जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता है, त्यों ही उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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