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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-231

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जय श्री राधे कृष्ण …..

सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना, सरनागत बच्छल भगवाना ।।

भावार्थ:– प्रभु के वचन सुन कर हनुमान जी हर्षित हुए (और मन ही मन कहने लगे कि) भगवान कैसे शरणागत वत्सल (शरण में आए हुए पर पिता की भाँति प्रेम करने वाले) हैं ।।

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ।।

भावार्थ:– (श्री राम जी फिर बोले), जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान कर के शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है ( पाप लगता है)……!!

दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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