किरात अवतार की वो कथा जब पांडव वनवास में थे
जब पांडव वनवास में थे तब एक दिन अर्जुन ने निर्णय लिया कि हिमालय पर जाकर तपस्या करनी चाहिए और देवाधिदेव शिव को प्रसन्न कर वरदान में कुछ दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करना चाहिए।पांडुपुत्र वीर अर्जुन हिमालय पर्वतमाला पर बसे इन्द्रकील नामक स्थल पर जा पहुंचा। यहां ऋषियों के अनेक आश्रम थे, वातावरण बड़ा शांत और सुरभिमय था। वहां पहुंचकर अर्जुन ने अस्त्र-शस्त्र उतार दिए और एक शिवलिंग के सामने एकाग्र होकर तपस्या में बैठ गए।
भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए किरात रुपी भील वेश धारण किया और इन्द्रकील जा पहुंचे। उसी समय इन्द्रकील पर मूकासुर नामक दैत्य ने अतिभयंकर सूअर का रूप धरकर ऋषि-मुनियों के आश्रम में उत्पात मचाना शुरु कर दिया। ऋषि-मुनियों के आश्रमों में कोलाहल मच गया। इससे अर्जुन का ध्यान भंग हो गया। विकराल सूअर को उत्पात मचाते देखकर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया और चला दिया। लेकिन सूअर के शरीर में दो तीर एकसाथ आ घुसे। दूसरा तीर किरात भेषधारी शिव का था। दो-दो तीर खाकर सूअर भेषधारी मूकासुर ढेर हो गया और जमीन पर गिरते ही अपने असली रूप में आ गया।
सूअर का वध किसने किया इस बात को लेकर अर्जुन और किरात रुपी शिव दोनों अड़ गए। शिव की लीला ही थी कि उनमें और अर्जुन में युद्ध छिड़ गया। अर्जुन के सभी बाणों को किरात ने काट डाला लेकिन किरात को खरोंच तक नहीं लगी। उधर अर्जुन का तूणीर बाणों से खाली हो गया।
अब अर्जुन ने किरात के ऊपर तलवार से हमला किया,लेकिन अर्जुन की तलवार टूट गई। तब निहत्थे अर्जुन ने एक विशाल पेड़ उखाड़ कर किरात पर फेंका, लेकिन किरात के शरीर से टकराते ही पेड़ तिनके की भांति टूटकर बिखर गया। तब अवाक और हैरान अर्जुन ने निहत्थे ही किरात से युद्ध करना शुरु कर दिया। लेकिन किरात रुपी शिव ने अर्जुन को उठाकर जमीन पर ऐसा पटका कि वह अर्जुन बेसुध हो गया। होश में आने पर अर्जुन ने वहीं पर रेत का शिवलिंग बनाकर शिव की पूजा शुरु कर दी। इससे अर्जुन को नई शक्ति और अपार स्फूर्ति आ गई।
उसने फिर से किरात को ललकारा।लेकिन जैसे ही अर्जुन की दृष्टि किरात के गले में पड़ी फूलमाला पर पड़ी, वह स्तब्ध रह गया। क्योंकि वही फूलमाला तो अर्जुन ने शिवलिंग पर चढ़ाई थी। यह देखकर अर्जुन को समझ में आ गया कि किरात के रूप में कोई और नहीं स्वयं भगवान शंकर हैं।
अर्जुन किरात के चरणों में गिर पड़े और अपने आंसुओं से भगवान शिव के चरणों को धोकर क्षमा मांगी। तब शिवजी अपने असली रूप में प्रकट हुए। अर्जुन ने वहीं शिव-पूजन करके उन्हें प्रसन्न किया।
देवाधिदेव शिव ने अर्जुन के भक्ति और साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा की और वरदान स्वरुप अभेद्य पाशुपत अस्त्र प्रदान किया।
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जय श्रीराम