जय श्री राधे कृष्ण …..
“देखिहउँ जाइ चरन जलजाता, अरुन मृदुल सेवक सुखदाता, जे पद परसि तरी रिषिनारी, दंडक कानन पावनकारी ।।
भावार्थ:– (वे सोचते जाते थे) मैं जाकर भगवान के कोमल और लाल वर्ण के सुंदर चरण कमलों के दर्शन करूँगा, जो सेवकों को सुख देने वाले हैं, जिन चरणों का स्पर्श पाकर ऋषि पत्नी अहिल्या तर गई और जो दण्डक वन को पवित्र करने वाले हैं…….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
