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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-222

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जय श्री राधे कृष्ण …..

रावन जबहिं बिभीषन त्यागा, भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा, चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं, करत मनोरथ बहु मन माहीं ।।

भावार्थ:- रावण ने जिस क्षण बिभीषण को त्यागा, उसी क्षण वह अभागा वैभव (ऐश्वर्य) से हीन हो गया । विभीषण जी हर्षित हो कर मन में अनेकों मनोरथ करते हुए श्री रघुनाथ जी के पास चले…!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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