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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-219

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जय श्री राधे कृष्ण …..

उमा संत कइ इहइ बड़ाई, मंद करत जो करइ भलाई, तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा, रामु भजें हित नाथ तुम्हारा ।।

भावार्थ:– (शिव जी कहते हैं), हे उमा, संत की यही बड़ाई (महिमा) है कि वे बुराई करने पर भी (बुराई करने वाले की) भलाई ही करते हैं । (विभीषण जी ने कहा), आप मेरे पिता के समान हैं। मुझे मारा सो तो अच्छा ही किया, परंतु हे नाथ ! आप का भला श्री राम जी को भजने में ही है….!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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