जय श्री राधे कृष्ण …..
“मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती, सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती, अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा, अनुज गहे पद बारहिं बारा ।।
भावार्थ:– मेरे नगर में रह कर प्रेम करता है तपस्वियों पर । मूर्ख ! उन्हीं से जा मिल और उन्हीं को नीति बता । ऐसा कह कर रावण ने उन्हें लात मारी । परंतु छोटे भाई विभीषण ने (मारने पर भी) बार-बार उसके चरण ही पकड़े….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..