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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-217

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जय श्री राधे कृष्ण …..

जिअसि सदा सठ मोर जिआवा, रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा, कहसि न खल अस को जग माहीं, भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं ।।

भावार्थ:– अरे मूर्ख ! तू जीता तो है सदा मेरा जिलाया हुआ (अर्थात मेरे ही अन्न से पल रहा है), पर हे मूढ़ !, पक्ष तुझे शत्रु का ही अच्छा लगता है । अरे दुष्ट ! बता न, जगत् में ऐसा कौन है जिसे मैंने अपनी भुजाओं के बल से न जीता हो ?……!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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