जय श्री राधे कृष्ण …..
“जिअसि सदा सठ मोर जिआवा, रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा, कहसि न खल अस को जग माहीं, भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं ।।
भावार्थ:– अरे मूर्ख ! तू जीता तो है सदा मेरा जिलाया हुआ (अर्थात मेरे ही अन्न से पल रहा है), पर हे मूढ़ !, पक्ष तुझे शत्रु का ही अच्छा लगता है । अरे दुष्ट ! बता न, जगत् में ऐसा कौन है जिसे मैंने अपनी भुजाओं के बल से न जीता हो ?……!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
