आज वो घर पर है
घर जाने के लिए निकला। अशांत और विचलित मन लिए सब्जी मंडी पहुँचा कुछ सब्जियाँ खरीदीं। आज कुछ देर हो गई थी तो घर पहुँचकर खिचड़ी अथवा मैगी बना लेने का विचार चल रहा था। पिछले सप्ताह के एक भी कपड़े धुले नहीं थे अतः 5-6 दिन से एक ही पेंट को रगड़ रहा था। एक हाथ से काँधे पर लटके बैग को सम्हालता और दूसरे हाथ में दूध की थैली पकड़े पसीने से तरबतर चेहरा लिए घर पहुँचा। द्वार का ताला खोलना चाहा तो देखा, पल्ले भर भिड़े हुए थे, ताला खुला था। कुछ चिंतित हुआ।
जैसे ही घर में प्रवेश किया तो यूँ लगा मानो स्वर्ग में आ गया हूँ। शंका हुई कि, किसी दूसरे के घर में तो नहीं आ गया ? खामोशी से अंदर के कमरे में गया। फ्रीज खोला तो भीतर की ठंडक चेहरे से टकराई। कोने में अचार रखा हुआ था। मैथी की भाजी बारीक और व्यवस्थित कतरी हुई करीने से रखी थी। सुबह तो फ्रीज में एक ठो बिस्किट पैकेट रखने की जगह नहीं थी, सारा फ्रीज भरा पड़ा था और अब देखो, साफ सुथरी जगह ही जगह थी। धीरे से साथ लाई हुई सब्जियाँ भी फ्रीज में ही रख दीं।कोने में रखी पानी की टंकी, जिसने हफ्ते भर से पानी का मुँह नहीं देखा था अब, पूरी भरी हुई चमक रही थी। तभी ध्यान गया कि पीछे पीछे अगरबत्ती की खुशबू भी चली आ रही थी, मन को आनंदित कर रही थी।
अपना बैग एक कुर्सी पर पटका तो याद आया कि, सुबह अपना टॉवेल बिस्तर पर ही छोड़ दिया था, देखा तो वहाँ न होकर वह खिड़की के बाहर तार पर लटका सूख रहा था। अलमारी का पल्ला खोला जिसमें बिना धुले कपड़े थे लेकिन अब सारे ही धुले, इस्त्री किए व्यवस्थित रखे थे। सुबह एक रुमाल मिलकर नहीं दे रहा था और अब, अंदर साफ सुथरे रुमाल पर रुमाल की गड्डी रखी हुई थी। सुबह सॉक्स की जोड़ी नहीं मिली तो अलग अलग डिजाइन के मोजे पहनकर निकल गया था लेकिन अब सारे सॉक्स एक स्थान पर उपस्थित पड़े मुझे देख मुस्कुरा रहे थे। लाल, पीली, नीली शर्ट्स बढ़िया हैंगर पर टंगी हुई थीं।
धीरे से टीवी के सामने बैठा, टीवी जिसपर धूल की परतें जम गई थीं अब चमक रहा था और स्क्रीन पर चित्र भी स्पष्ट दिख रहे थे। प्यास लगी तो पानी पीने किचिन में पहुँचा, जिस किचिन में लहसुन, प्याज और न जाने किस किस किस्म की गंध भरी रहती थी, अब भूख जगा देने वाले भोजन की सुगंध से महक रहा था। राजेन्द्र सोनी उगालन।
भावनाओं में बहता, बाहर आकर टीवी के सामने एक चेयर पर बैठ गया और अपनी आँखें बंद कर लीं और सोचने लगा। फिर आँखें खोलकर अपनी ही बाँह पर चिमटी ली कि, कहीं ये सब स्वप्न तो नहीं। तभी गरमागरम पकौड़ों की प्लेट और भाप निकलती चाय किसी ने सामने टेबल पर रख दी। भीतर का अहम जैसे जर्रा जर्रा होकर बिखर गया। जब थककर आता था तो जैसे तैसे दही चावल पर गुजारा कर लिया करता था और आज भाप निकलती स्वादिष्ट चाय और गरम पकौड़ों का आनंद ले रहा था। न चाहते हुए भी आँसू की दो बूंदें आँखों से निकलकर गालों पर बह निकलीं। फिर खुद को सम्हाला तो अहसास हुआ…..
” क्योंकि आज वो घर पर है !!! “
संसार के सारे सुख और समृद्धि की प्रदाता वो…किसी के लिए माँ,…किसी की पत्नी,…किसी की बहन, तो किसी के लिए बेटी है।
आप कितने ही बड़े हों, महान हों लेकिन सुखमय जीवन के लिए किसी न किसी रूप में एक स्त्री आपके जीवन में अतिआवश्यक है।
वो किसी भी रूप में हो मगर, घर को घर वही बनाती है,चार दीवारों से मकान होता है,जब उसमें रिश्ते,परिवार हो तो वो घर बनता है। आप सभी पढ़कर जिस भी सबन्ध (माँ,बहन,बेटी,पत्नी,बहु)को याद कर रहे हो, मेरा आग्रह बस ये है कि उस स्त्री के सम्बन्ध के महत्व को समझे,उन्हेंआदर,सम्मान तथा स्नेह दे।
कहानी अच्छी लगे तो Like और Comment जरुर करें। यदि पोस्ट पसन्द आये तो Follow & Share अवश्य करें ।
जय श्रीराम
Ghar parivaar satri se hi Banta hai
Right Sir
Meri maa kahti thi…. Grihni bina ghar bhoot ka dera… Jo ki bilkul sahee hai… Ye kahani bhi wahi kah rahee hai
She is right Rajesh Jamuar Sir…..