जय श्री राधे कृष्ण …..
“बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस, परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस ।।
भावार्थ:– हे दशशीश! मैं बार – बार आपके चरणों लगता हूँ और विनती करता हूँ कि मान, मोह और मद को त्याग कर आप कोसलपति श्री राम जी का भजन कीजिए…… ।।
मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात, तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात ।।
भावार्थ:– मुनि पुलस्त्य जी ने अपने शिष्य के हाथ यह बात कहला भेजी है । हे तात! सुन्दर अवसर पाकर मैंने तुरंत ही वह बात प्रभु (आप) से कह दी….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
