जय श्री राधे कृष्ण …….
“जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं, नर बानर केहि लेखे माहीं ।।
भावार्थ:- आप ने देवताओं और राक्षसों को जीत लिया तब तो कुछ श्रम ही नहीं हुआ, फिर मनुष्य और वानर किस गिनती में हैं ।।
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।।
भावार्थ:- मंत्री, वैद्य, और गुरु ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कह कर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं) तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है…….!!
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
