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बाबा

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बाबा

“कहाँ जा रही हो?” विदा हो चुकी नवविवाहित दुल्हन सुषमा ने जब अचानक कार की खिड़की खोली तो दूल्हा निखिल तपाक से बोला। ” मैं मेरा  बच्चा रोता छोड़ आयी, उसे चुप करा आऊं।” आंसू पौंछती हुई सुषमा ने जवाब दिया और निखिल की सहमति का इंतज़ार किये बिना गाड़ी से निकल कर घर की और दौड़ पड़ी।

” बस! और कर ले ऑनलाइन शादी और वो भी इतनी जल्दी में… अब भुगत बच्चू सारी उम्र।” गाड़ी के पास खड़े निखिल के पापा निखिल पर एकदम बरस पड़े। निखिल भी पापा की बातों का जवाब दिए बिना सुषमा के पीछे दौड़ पड़ा। तेज़ कदमों से चलती सुषमा के पास आकर कदम चाल मिलाता हुआ निखिल गुस्से में बोला,” सुषमा, क्या बकवास है ये? ” सुषमा ने रोते हुए हुए निखिल की तरफ देखा और निरंतर घर की ओर चलती गयी।

       सुषमा सीधी घर के आखरी कमरे में पहुंच गई जहां हल्के प्रकाश में सिर्फ एक आकृति खड़ी दिखाई दे रही थी। दीवार की तरफ मुंह किये हुए बुजुर्ग एक हाथ में शादी के हिसाब किताब का बैग पकड़े हुए खड़ा था और दूसरे हाथ से अपने आंसू पौंछ रहा था। मैले सफेद कुर्ते और कोल्हापुरी चप्पल में सफेद दाढ़ी वाले रोते हुए शख्श से सुषमा पीछे से जा कर चिपक गयी और बस एक ही शब्द बोली,” बाबा”।

      कमरे के किवाड़ के पास खड़े निखिल की आंखों के किनारे गीले हो गये। निखिल वहां से वापस मुड़ा तो पीछे पीछे आये निखिल के पापा  ने जलता सवाल दागा,” कहाँ है वो? ” निखिल रूमाल से आंखें पौंछता हुआ बोला,” पापा, बच्चा चुप कराने में आपकी बहू को थोड़ा टाइम लगेगा। आइये, तब तक हम चाय पीते हैं।” निखिल के पापा की आंखें अब हैरानी से फटी की फटी थी।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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