जय श्री राधे कृष्ण …….
“तव कुल कमल बिपिन दुखदाई, सीता सीत निसा सम आई, सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें, हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें ।।
भावार्थ:– सीता आप के कुल रूपी कमलों के वन को दु:ख देने वाली जाड़े की रात्रि के समान आई है । हे नाथ! सुनिए, सीता को दिए (लौटाए) बिना शंभु और ब्रह्मा के किए भी आप का भला नहीं हो सकता…….!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..