जय श्री राधे कृष्ण …….
“समुझत जासु दूत कइ करनी, स्त्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी, तासु नारि निज सचिव बोलाई, पठवहु कंत जो चहहु भलाई||
भावार्थ:– जिनके दूत की करनी का विचार करते ही (स्मरण आते ही) राक्षसों की स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं, हे प्यारे स्वामी, यदि भला चाहते हैं तो अपने मंत्री को बुला कर उसके साथ उनकी स्त्री को भेज दीजिये…!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
