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Month Archives: May 2024

Stories

ईश्वर का प्रमाण

ईश्वर का प्रमाण एक दिन एक राजा ने अपने सभासदों से कहा, ‘क्या तुम लोगों में कोई ईश्वर के होने का प्रमाण दे सकता है ?......सभासद सोचने लगे... अंत में एक मंत्री ने कहा, ‘महाराज, मैं कल इस प्रश्न का...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-177

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नाथ भगति अति सुखदायनी, देहु कृपा करि अनपायनी, सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी, एवमस्तु तब कहेउ भवानी ।। भावार्थ:- हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा कर के दीजिए ।...

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रिश्तों में सामंजस्य

रिश्तों में सामंजस्य निहारिका की शादी खूब धूमधाम से हुई। वह बहुत खुश है। ससुराल में उसे खूब अच्छा लाड प्यार मिल रहा है। पग फेरे (गौने)की रस्म के लिए आज वह मायके आई हुई है। सुबह से ही चहक...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-176

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सो सब तव प्रताप रघुराई, नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ।। भावार्थ:- यह सब तो हे रघुनाथ जी, आप ही का प्रताप है । हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता (बड़ाई) कुछ भी नहीं है ।।...

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श्री हनुमानजी और यम

श्री हनुमानजी और यम हनुमान जी की यम से मुठभेड़ तब होती है जब हनुमानजी माता सीता का पता लगाने के लिए लंका जाते हैं।   माता सीता को खोज सफलतापूर्वक पूरी होने के बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका में मेघनाथ...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-175

जय श्री राधे कृष्ण ……. "साखामृग कै बड़ि मनुसाई, साखा तें साखा पर जाई, नाघि सिंधु हाटकपुर जारा, निसिचर गन बधि बिपिन उजारा ।। भावार्थ:- बंदर का बस यही पुरुषार्थ है कि वह एक डाल से दूसरी डाल पर चला...

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सदैव अच्छा करो

सदैव अच्छा करो एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए प्रतिदिन भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी। वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-174

जय श्री राधे कृष्ण ……. "कहु कपि रावन पालित लंका, केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका, प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना,बोला बचन बिगत अभिमाना ।। भावार्थ:- हे हनुमान ! बताओ तो, रावण के द्वारा सुरक्षित लंका और उस के बड़े बाँके...

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सूर्य और गुफा

सूर्य और गुफाएक दिन सूरज और एक गुफा में बातचीत हुई। सूरज को "अंधेरे" का मतलब समझने में परेशानी हो रही थी और गुफा को "प्रकाश" और "स्पष्टता" का मतलब समझ नहीं आ रहा था, इसलिए उन्होंने अपने स्थान परस्पर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-173

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सावधान मन करि पुनि संकर, लागे कहन कथा अति सुंदर, कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा, कर गहि परम निकट बैठावा ।। भावार्थ:- फिर मन को सावधान कर के शंकर जी अत्यंत सुंदर कथा कहने लगे...

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