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चुहिया का स्वयंवर

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चुहिया का स्वयंवर

गंगा नदी के तट पर कुछ तपस्वियों का आश्रम था जहाँ याज्ञवल्क्य नाम के ऋषि रहते थे। एक दिन वो नदी के किनारे आचमन कर रहे थे। उसी वक़्त आकाश में एक बाज अपने पंजे में एक चुहिया को दबाये जा रहा था जो उसकी पकड़ से छूटकर ऋषि की पानी से भरी हथेली में आ गिरी। ऋषि ने उसे एक पीपल के पत्ते पर रखा और दोबारा नदी में स्नान किया। चुहिया अभी मरी नहीं थी इसलिए ऋषि ने अपने तप से उसे एक कन्या बना दिया और आश्रम में ले आये। अपनी पत्नी से कहा इसे अपनी बेटी ही समझकर पालना। दोनों निसंतान थे इसलिए उनकी पत्‍नी ने कन्या का पालन बड़े प्रेम से किया। कन्या उनके आश्रम में पलते हुए बारह साल की हो गयी तो उनकी पत्‍नी ने ऋषि से उसके विवाह के लिए कहा।

ऋषि ने कहा में अभी सूर्य को बुलाता हूँ. यदि यह हाँ कहे तो उसके साथ इसका विवाह कर देंगे ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह अग्नि जैसा गरम है। कोई इससे अच्छा वर बुलाइये।”  तब सूर्य ने कहा बादल मुझ से अच्छे हैं, जो मुझे ढक लेते हैं। बादलों को बुलाकर ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह बहुत काले हैं कोई और वर ढूँढिए।”

फिर बादलों ने कहा “वायु हमसे भी वेगवती है जो हमें उड़ाकर ले जाती है।” तब ऋषि ने वायु को बुलाया और कन्या की राय माँगी तो उसने कहा “पिताजी यह तो बड़ी चंचल है।. किसी और वर को बुलाइए।”

इस पर वायु बोली “पर्वत मुझसे अच्छा है, जो तेज़ हवाओं में भी स्थिर रहता है।” अब ऋषि ने पर्वत को बुलाया और कन्या से पूछा। कन्या ने उत्तर दिया “पिताजी, ये बड़ा कठोर और गंभीर है, कोई और अच्छा वर ढूँढिए न।”

इस पर पर्वत ने कहा “चूहा मुझसे अच्छा है, जो मुझमें छेद कर अपना बिल बना लेता है।” ऋषि ने तब चूहे को बुलाया और बेटी से कहा “पुत्री यह मूषकराज क्या तुम्हें स्वीकार हैं?”….कन्या ने चूहे को देखा और देखते ही वो उसे बेहद पसंद आ गया। उस पर मोहित होते हुए वो बोली “आप मुझे चुहिया बनाकर इन मूषकराज को सौंप दीजिये।”

ऋषि ने तथास्तु कह कर उसे फिर चुहिया बना दिया और मूषकराज से उसका स्वयंवर करा दिया।

शिक्षा:- जन्म से जिसका जैसा स्वभाव होता है वह कभी नहीं बदल सकता।

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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