जय श्री राधे कृष्ण …….
“सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई, गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ठ कठोर सो किमि सोहई, रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी, जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी ।।
भावार्थ:- उदार (परम श्रेष्ठ एवं महान) सर्पराज शेष जी भी सेना का बोझ नहीं सह सकते, वे बार – बार मोहित हो जाते (घबड़ा जाते) हैं और पुनः – पुनः कच्छप की कठोर पीठ को दांतों से पकड़ते हैं । ऐसा करते (अर्थात बार-बार दाँतों को गड़ा कर कच्छप की पीठ पर लकीर सी खींचते हुए) वे कैसे शोभा दे रहे हैं मानों श्री राम चन्द्र जी की सुन्दर प्रस्थान यात्रा को परम सुहावनी जान कर उसकी अचल पवित्र कथा को सर्पराज शेष जी कच्छप की पीठ पर लिख रहे हों…..!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..