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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-187

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जय श्री राधे कृष्ण …….

चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खर भरे, मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे, कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं, जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं ।।

भावार्थ:- दिशाओं के हाथी चिग्घाड़ने लगे, पृथ्वी डोलने लगी, पर्वत चंचल हो गये (कांपने लगे) और समुद्र खलबला उठे । गंधर्व, देवता, मुनि, नाग, किन्नर सब के सब मन में हर्षित हुए कि (अब) हमारे दुख टल गये । अनेकों करोड़ भयानक वानर योद्धा कटकटा रहे हैं और करोड़ों ही दौड़ रहे हैं । ‘प्रबल प्रताप कोसलनाथ श्रीरामचन्द्र जी की जय हो’, ऐसा पुकारते हुए वे उनके गुण समूहों को गा रहे हैं……!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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