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पेइंग गेस्ट वाली माँ

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पेइंग गेस्ट वाली माँ
वो चुपचाप पढ़ता रहता है, ज्यादा बातें नहीं करता। आगे का छोटा कमरा दे रखा है हमने। सुबह का नाश्ता कर के जाता है फिर कॉलेज और ट्यूशन करके एक ही बार शाम में आता है। रात का खाना भी हम देते हैं, यही तय हुआ था हमारे बीच। कल अपनी मां से बातें कर रहा था ये..तो मैंने थोड़ा बहुत सुन लिया था। आज कॉलेज जा रहा था तो लंच बॉक्स भी दे दिया मैंने, फिर शाम में आया तो कुछ हल्का फुल्का खाने को। रात में खाना देने आयी तो..
राही

“आंटी, दो वक्त का ही तय हुआ था ना खाना, मैं एक्सट्रा पैसे नहीं दे पाऊंगा”

“तू पढ़ने वाला बच्चा है ना, भूख लग जाती होगी, एक्सट्रा पैसे मत देना.. अब चुपचाप खा ले”

“जी आंटी”

“और रात को डरा मत कर, बाहर का छोटा लाईट जलता रहेगा आज से। और डरता क्यूँ है? मैं और तेरे अंकल पास ही के कमरे में तो रहते हैं, ध्यान से सिर्फ पढ़ाई कर”

“आंटी! आपने कल माँ से फ़ोन पर मेरी बातें सुन ली थी ना? वो शर्माते हुए बोल रहा था

“हां.. पर माँ तो दूर है ना तेरी..जब तक तू यहां है ये सब मुझसे बोला कर.. समझना तबतक मैं भी तेरी माँ हूँ..!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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