जय श्री राधे कृष्ण …….
“नख आयुध गिरि पादपधारी, चले गगन महि इच्छाचारी, केहरिनाद भालु कपि करहीं, डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं ।।
भावार्थ:– नख ही जिनके शस्त्र हैं, वे इच्छानुसार (सर्वत्र बेरोक – टोक) चलने वाले रीछ – वानर पर्वतों और वृक्षों को धारण किये कोई आकाश मार्ग से कोई पृथ्वी पर चले जा रहें हैं । वे सिंह के समान गर्जना कर रहे हैं । (उनके चलने और गर्जने से) दिशाओं के हाथी विचलित हो कर चिग्घाड़ रहे हैं ……!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..