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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-186

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जय श्री राधे कृष्ण …….

नख आयुध गिरि पादपधारी, चले गगन महि इच्छाचारी, केहरिनाद भालु कपि करहीं, डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं ।।

भावार्थ:– नख ही जिनके शस्त्र हैं, वे इच्छानुसार (सर्वत्र बेरोक – टोक) चलने वाले रीछ – वानर पर्वतों और वृक्षों को धारण किये कोई आकाश मार्ग से कोई पृथ्वी पर चले जा रहें हैं । वे सिंह के समान गर्जना कर रहे हैं । (उनके चलने और गर्जने से) दिशाओं के हाथी विचलित हो कर चिग्घाड़ रहे हैं ……!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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