जय श्री राधे कृष्ण …….
“सो सब तव प्रताप रघुराई, नाथ न कछू मोरि प्रभुताई ।।
भावार्थ:- यह सब तो हे रघुनाथ जी, आप ही का प्रताप है । हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता (बड़ाई) कुछ भी नहीं है ।।
“ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम अनुकूल, तव प्रभाव बडवानलहिं जारि सकइ खलु तूल ।।
भावार्थ:- हे प्रभु! जिस पर आप प्रसन्न हों, उस के लिए कुछ भी कठिन नहीं है । आप के प्रभाव से रुई (जो स्वयं बहुत जल्दी जल जाने वाली वस्तु है) बड़वानल को निश्चय ही जला सकती है (अर्थात असंभव भी संभव हो सकता है)……!!
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
