जय श्री राधे कृष्ण …….
“सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं, देखेउँ करि बिचार मन माहीं, पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता, लोचन नीर पुलक अति गाता ।।
भावार्थ:– हे पुत्र! सुन, मैंने मन में (खूब) विचार कर के देख लिया कि मैं तुझसे उऋण नहीं हो सकता । देवताओं के रक्षक प्रभु बार-बार हनुमान जी को देख रहे हैं । नेत्रों में प्रेमाश्रुओं का जल भरा है और शरीर अत्यंन्त पुलकित है…..!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
