भावुक प्रसंग -मीरा चरित्र जरूर पढ़ें
मीरा को चित्तौड़ में आये कुछ मास बीत गये । गिरधर की रागसेवा नियमित चल रही है ।मीरा अपने कक्ष में बैठे गिरधरलाल की पोशाक पर मोती टाँक रही थी । कुछ ही दूरी पर मसनद के सहारे भोजराज बैठे थे । “सुना है आपने योग की शिक्षा ली है । ज्ञान और भक्ति दोनों ही आपके लिए सहज है ।यदि थोड़ी -बहुत शिक्षा सेवक भी प्राप्त हो तो यह जीवन सफल हो जाये ।”भोजराज ने मीरा से कहा ।
ऐसा सुनकर मुस्कुरा कर भोजराज की तरफ देखती हुई मीरा बोली , ” यह क्या फरमाते है आप ? चाकर तो मैं हूँ । प्रभु ने कृपा की कि आप मिले ।कोई दूसरा होता तो अब तक मीरा की चिता की राख भी नहीं रहती । चाकर आप और मैं , दोनों ही गिरधरलाल के है ।”
” भक्ति और योग में से कौन श्रेष्ठ है ?”भोजराज ने पूछा ।……” देखिये, दोनों ही अध्यात्म के स्वतन्त्र मार्ग है । पर मुझे योग में ध्यान लगा कर परमानन्द प्राप्त करने से अधिक रूचिकर अपने प्राण-सखा की सेवा लगी ।”
” तो क्या भक्ति में ,सेवा में योग से अधिक आनन्द है?”……” यह तो अपनी रूचि की बात है ,अन्यथा सभी भक्त ही होते संसार में । योगी ढूँढे भी न मिलते कहीं ।”
” मुझे एक बात अर्ज करनी थी आपसे ” मीरा ने कहा । ” एक क्यों , दस कहिये । भोजराज बोले । ” आप जगत-व्यवहार और वंश चलाने के लिए दूसरा विवाह कर लीजिए।” ” बात तो सच है आपकी ,किन्तु सभी लोग सब काम नहीं कर सकते । उस दिन श्याम कुन्ज में ही मेरी इच्छा आपके चरणों की चेरी बन गई थी । आप छोड़िए इन बातों में क्या रखा है ?…….यदि इनमें थोड़ा भी दम होता तो ………… ” बात अधूरी छोड़ कर वे मीरा की ओर देख मुस्कुराये – ” रूप और यौवन का यह कल्पवृक्ष चित्तौड़ के राजकुवंर को छोड़कर इस मूर्ति पर न्यौछावर नहीं होता और भोज शक्ति और इच्छा का दमन कर इन चरणों का चाकर बनने में अपना गौरव नहीं मानता ।जाने दीजिये – आप तो मेरे कल्याण का सोचिए । लोग कहते है – ईश्वर निर्गुण निराकार है । इन स्थूल आँखों से नहीं देखा जा सकता ,मात्र अनुभव किया जा सकता है । सच क्या है , समझ नहीं पाया ।”
“वह निर्गुण निराकार भी है और सगुण साकार भी ।” मीरा ने गम्भीर स्वर में कहा – ” निर्गुण रूप में वह आकाश , प्रकाश की भांति है -जो चेतन रूप से सृष्टि में व्याप्त है। वह सदा एकरस है।उसे अनुभव तो कर सकते है,पर देख नहीं सकते।और ईश्वर सगुण साकार भी है। यह मात्र प्रेम से बस में होता है,रूष्ट और तुष्ट भी होता है।ह्रदय की पुकार भी सुनता है और दर्शन भी देता है।” मीरा को एकाएक कहते कहते रोमांच हुआ ।
यह देख भोजराज थोड़े चकित हुए।उन्होने कहा ,” भगवान के बहुत नाम – रूप सुने जाते है । नाम – रूपों के इस विवरण में मनुष्य भटक नहीं जाता ?”……” भटकने वालों को बहानों की कमी नहीं रहती।भटकाव से बचना हो तो सीधा उपाय है कि जो नाम-रूप स्वयं को अच्छा लगे,उसे पकड़ ले और छोड़े नहीं ।दूसरे नाम-रूप को भी सम्मान दें ।क्योंकि सभी ग्रंथ , सभी साम्प्रदाय उस एक ईश्वर तक ही पहुँचने का पथ सुझाते है ।मन में अगर दृढ़ विश्वास हो तो उपासना फल देती है..!!” जय श्री कृष्ण
जय श्रीराम